हनुमान ने भीम का घमंड किस प्रकार तोडा?
प्रिय छात्र!
आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-
हम अपने विचार इस कहानी में प्रकट कर रहे हैं, जिनके माध्यम से आप अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं -
महाभारत के पात्र भीम अत्यंत बलशाली थे। कुरुक्षेत्र में उन्होंने अपने युद्ध कौशल और बाहुबल से अनेक योद्धाओं को परास्त किया था। कहा जाता है कि भीम को भी अपनी शक्ति का अभिमान हो गया था।
एक बार द्रोपदी ने उनसे कहा, आप महान वीर हैं, बलशाली हैं। मुझे गंधमादन पर्वत पर पाए जाने वाला एक विशेष कमल का पुष्प चाहिए। क्या आप मुझे वह पुष्प लाकर दे सकते हैं?
भीम ने द्रोपदी का आग्रह मान लिया और चल दिए गंधमादन पर्वत की ओर। वे अभी कुछ दूर चले ही थे कि मार्ग में एक वृद्ध वानर मिला। वह मार्ग में लेटा हुआ था और उसकी पूंछ भीम के रास्ते में आ रही थी।
भीम जानते थे कि किसी भी प्राणी के ऊपर से रास्ता पार करना अशिष्टता होती है। इसलिए उन्होंने वानर से कहा- वानर, तुम्हारी पूंछ मेरे मार्ग में आ रही है। मुझे आगे जाना है। यहां रुकने से मुझे विलंब हो रहा है। इसे तुरंत हटा लो।
वानर ने देखा, यह बलशाली और विशाल शरीर वाला योद्धा खड़ा है। पूंछ हटाने के लिए उसने जो शब्द इस्तेमाल किए उसमें विनम्रता के बजाय आदेश और अभिमान अधिक था।
वानर ने कहा, भाई आप तो महान बलशाली लगते हैं। मैं तो वृद्ध और कमजोर वानर हूं। अपनी पूंछ हटाने में असमर्थ हूं। आप ही मेरी पूंछ हटाकर आगे बढ़ जाइए। आपको विलंब भी नहीं होगा और मेरा काम भी हो जाएगा।
भीम सोचने लगे, विचित्र वानर है, अपनी पूंछ भी नहीं हटा सकता! परंतु मुझमें तो अपार शक्ति है। इसने मेरी शक्ति को ललकारा है। मैं अभी इसकी पूंछ को हटा देता हूं।
भीम अपनी गदा लेकर उसकी पूंछ हटाने में जुट गए। उन्होंने भरपूर शक्ति का उपयोग किया लेकिन पूंछ हटाना तो दूर वे उसे हिला भी नहीं सके।
उन्होंने और शक्ति लगाई लेकिन पूंछ तिल भर भी नहीं हिली। जिस पूंछ को वे किसी साधारण वानर की पूंछ समझ रहे थे, उसके सामने भीम के भी पसीने छूट गए।
आखिरकार भीम ने हार मान ली और बोले, आप कोई मामूली वानर नहीं हैं। अगर होते तो मेरा यह हाल नहीं होता। मैं आपकी शक्ति को प्रणाम करता हूं और जानना चाहता हूं कि आप कौन हैं?
इसके बाद हनुमानजी अपने वास्तविक स्वरूप में आए। उन्होंने भीम को आशीर्वाद दिया और कभी भी अपनी शक्ति का अभिमान न करने के लिए कहा।
हनुमानजी से यह सबक सीखकर भीम को अपनी त्रुटि का ज्ञान हुआ। उन्होंने कभी घमंड न करने का वचन दिया और हनुमानजी को प्रणाम कर आगे चले गए।
सादर।
आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-
हम अपने विचार इस कहानी में प्रकट कर रहे हैं, जिनके माध्यम से आप अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं -
महाभारत के पात्र भीम अत्यंत बलशाली थे। कुरुक्षेत्र में उन्होंने अपने युद्ध कौशल और बाहुबल से अनेक योद्धाओं को परास्त किया था। कहा जाता है कि भीम को भी अपनी शक्ति का अभिमान हो गया था।
एक बार द्रोपदी ने उनसे कहा, आप महान वीर हैं, बलशाली हैं। मुझे गंधमादन पर्वत पर पाए जाने वाला एक विशेष कमल का पुष्प चाहिए। क्या आप मुझे वह पुष्प लाकर दे सकते हैं?
भीम ने द्रोपदी का आग्रह मान लिया और चल दिए गंधमादन पर्वत की ओर। वे अभी कुछ दूर चले ही थे कि मार्ग में एक वृद्ध वानर मिला। वह मार्ग में लेटा हुआ था और उसकी पूंछ भीम के रास्ते में आ रही थी।
भीम जानते थे कि किसी भी प्राणी के ऊपर से रास्ता पार करना अशिष्टता होती है। इसलिए उन्होंने वानर से कहा- वानर, तुम्हारी पूंछ मेरे मार्ग में आ रही है। मुझे आगे जाना है। यहां रुकने से मुझे विलंब हो रहा है। इसे तुरंत हटा लो।
वानर ने देखा, यह बलशाली और विशाल शरीर वाला योद्धा खड़ा है। पूंछ हटाने के लिए उसने जो शब्द इस्तेमाल किए उसमें विनम्रता के बजाय आदेश और अभिमान अधिक था।
वानर ने कहा, भाई आप तो महान बलशाली लगते हैं। मैं तो वृद्ध और कमजोर वानर हूं। अपनी पूंछ हटाने में असमर्थ हूं। आप ही मेरी पूंछ हटाकर आगे बढ़ जाइए। आपको विलंब भी नहीं होगा और मेरा काम भी हो जाएगा।
भीम सोचने लगे, विचित्र वानर है, अपनी पूंछ भी नहीं हटा सकता! परंतु मुझमें तो अपार शक्ति है। इसने मेरी शक्ति को ललकारा है। मैं अभी इसकी पूंछ को हटा देता हूं।
भीम अपनी गदा लेकर उसकी पूंछ हटाने में जुट गए। उन्होंने भरपूर शक्ति का उपयोग किया लेकिन पूंछ हटाना तो दूर वे उसे हिला भी नहीं सके।
उन्होंने और शक्ति लगाई लेकिन पूंछ तिल भर भी नहीं हिली। जिस पूंछ को वे किसी साधारण वानर की पूंछ समझ रहे थे, उसके सामने भीम के भी पसीने छूट गए।
आखिरकार भीम ने हार मान ली और बोले, आप कोई मामूली वानर नहीं हैं। अगर होते तो मेरा यह हाल नहीं होता। मैं आपकी शक्ति को प्रणाम करता हूं और जानना चाहता हूं कि आप कौन हैं?
इसके बाद हनुमानजी अपने वास्तविक स्वरूप में आए। उन्होंने भीम को आशीर्वाद दिया और कभी भी अपनी शक्ति का अभिमान न करने के लिए कहा।
हनुमानजी से यह सबक सीखकर भीम को अपनी त्रुटि का ज्ञान हुआ। उन्होंने कभी घमंड न करने का वचन दिया और हनुमानजी को प्रणाम कर आगे चले गए।
सादर।