Isme konsa ras hai ?
(viii) चरन कमल बन्दौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै अंधे को सब कुछ दरसाई।।
बहिरौ सुनै गूंग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तिहि पाई।।

 

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इन पदों में भक्ति रस है। 

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