kripya VIPSA, VISHESHOKTI, VIBHAVNA, VIRODHABHAS tatha VYATIREK alankar ke kuch udahran dein....

yeh hamare pathyakram mein hain isliye inhe padhna anivarya hai...

नमस्कार मित्र,

आपके द्वारा लिखा हुआ पहला अंलकार स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। कृप्या उसे दोबारा से लिखकर दें। जहाँ तक हमारी जानकारी में है, ये अंलकार आपके पाठ्य-क्रम में नहीं होने चाहिए। परन्तु फिर भी आपको इनका उत्तर दे रहे हैं-

१.विशेषोक्ति- इसमें पूर्ण और प्रबल कारण के होने के बाद भी कार्य का नहीं होना दिखलाया जाता है; जैसे- मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी। 

नदिया को प्यासी बताया गया है, जोकि प्रबल और पूर्ण कारक है परन्तु फिर भी वह अपनी प्यास नहीं बुझा सकती। यहाँ प्यास न बुझना कार्य का नहीं होना है। अतः इन सब कारणों से यह विशेषक्ति अंलकार है।

२. विभावना- यहाँ कारण के होने पर भी कार्य होता है, वह विभावना अंलकार है;जैसे- 

पान मैं न खाता कभी तो भी ये अधर मेरे,

लाल-लाल होते जा रहे हैं क्यों प्रवाल मेरे?

3.विरोधाभास- यहाँ विरोध के नहीं होने पर भी विरोध का आभास प्रतीत होता है, वह विरोधाभास अंलकार है;जैसे- नयन लगे जबसे सखी तबसे लगत न नैन

४. व्यतिरेक- यहाँ उपमान की अपेक्षा उपमेय में विशषता दिखलाई जाती है। अर्थात उपमेय को उपमान की अपेक्षा हीन समझा जाता है;जैसे- साधू ऊँचे शैल सम, किंतु प्रकृति सुकुमा

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