ladhka ladhki ek saman par samwad lakhan

हमारे देश में देवी की जितनी पूजा होती है। उतनी ही उपेक्षा घर में बेटी की होती है। बेटा हो जाए, तो खुशियाँ मनाई जाती है और बेटी हो दुख का वातावरण छा जाता है। समय बदल रहा है परन्तु आज भी लोगों की सोच वैसी की वैसी बनी हुई है। लोग ये नहीं समझते की बेटा हो या बेटी दोनों एक समान है। आज के युग में बेटों के स्थान पर बेटियाँ अपने माता-पिता का कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। वह समय बीत गया जब बेटा घर की ज़िम्मेदारियाँ संभालता था आज बेटियाँ उससे दो कदम आगे हैं। वह अपने माता-पिता पर बोझ नहीं है। शिक्षित होकर वह जितना अधिक माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य को समझती है, उतना बेटा नहीं समझता। आज ये बातें आम सुनने को मिलती हैं कि एक बेटा अपना माता-पिता को छोड़कर कहीं ओर रहने लगा है। एक बेटी विवाह के बाद भी अपने माता-पिता को संभाले रखती हैं। बेटी ने हर क्षेत्र मेंअपनी सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं। वह आज नौकरी करने लगी है। हर क्षेत्र में उसकी योग्यता को सराहा जाता है। नौकरी के साथ आज वह अपना परिवार भी बहुत अच्छी तरह से संभाल रही है। बीते समय में स्त्री का घर से निकलकर नौकरी करना बहुत बुरा माना जाता था। उसे घर में रखी वस्तु के समान ही समझा जाता है। लेकिन जबसे वह शिक्षित हुई है, उसने इस धारणा के खण्ड-खण्ड कर दिए हैं। आज बेटों के स्थान पर वह पूरी निपूणता के साथ घर की ज़िम्मेदारियाँ संभाल रही है। नौकरी ने उसके अस्तित्व को सम्मान और गौरव दिया है। आज वह किसी पर आश्रित नहीं है। नौकरी को वह उतनी ज़िम्मेदारी के साथ निभा रही है जितनी ज़िम्मेदारी के साथ घर-परिवार संभाल रही हैं। इसलिए तो आज यह नारा घर-घर बोला जा रहा है बेटा-बेटी एक समान।

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