poem of  hemant seasons plzzzzzzzzzz

नमस्कार मित्र!
 
रात यह हेमंत की इसके रचियता है गिरिजाकुमार माथुर है।  
कामिनी-सी अब लिपट कर सो गई है 
रात यह हेमंत की
दीप-तन बन ऊष्म करने
सेज अपने कंत की
नयन लालिमा स्नेह-दीपित
भुज मिलन तन-गंध सुरभित
उस नुकीले वक्ष की
वह छुवन, उकसन, चुभन अलसित
इस अगरू-सुधि से सलोनी हो गई है
रात यह हेमंत की
कामिनी-सी अब लिपट कर सो गई है
रात यह हेमंत की
 
ढेरों शुभकामनाएँ!
 

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