summary of rahim ke dohe

(1) रहिम कहते हैं कि संपति होने पर तो सब ही आपके सगे-संबंधी व मित्र बनते हैं, उनकी कसौटी मुसीबत के क्षणों में ही होती है। जो हर प्रकार की मुसीबत में आपका साथ निभाते है और आपका साथ नहीं छोड़ते वही सच्चे मित्र कहलाते है।
(2) पानी व मछली से भरे तालाब में जाल फेंकने से पानी तो मछली को छोड़कर जाल से बाहर निकल जाता है परन्तु मछली पानी के मोह में आपने प्राणों को त्याग देती है।
(3) वृक्ष अपने फलों को स्वयं नहीं खाते है ना ही तालाब अपना पानी स्वयं पीते है, ये तो दूसरों की भूख व प्यास बुझाते हैं। इसलिए मनुष्य को चाहिए की संपति का संचयन अपने लिए न करके दूसरों की सहायता के लिए करना चाहिए।
(4) रहीम कहते हैं की वही बादल गरजते हैं जो बारिश नहीं करते परन्तु उनकी गरजना से यही अभास होता है की यह बारिश अवश्य करेगें, उसी प्रकार धनी व्यक्ति गरीब हो जाने पर अपने बीते समय की डीगें हाँकते रहते हैं मानो अब भी उनका वही समय चल रहा है।
(5) जिस तरह धरती गरमी, सरदी व बरसात की मार को अपनी देह में सह जाती है, उसी प्रकार मनुष्य का वही शरीर, शरीर कहलाता है जो विपत्ति को सह जाता है।

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