translation of van ke marg me
'वन के मार्ग में ' तुलसीदास द्वारा रचित रचना है। इन दो सवैये में तुलसीदास जी ने श्री राम के वनगमन का उल्लेख किया है। पहले सवैये में राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या से निकलकर वन के मार्ग में पहुँच गए हैं। सीता जी सुकुमारी है। अत: उन्हें बहुत परेशानी हो रही है। इस सवैये में उनकी अधिरता का बड़ा सजीव चित्रण किया गया है। दूसरे सवैये में राम की दशा देखकर सीता जी अधीर हो उठती हैं, तो वहीं राम भी सीता की दशा देखकर दुखी हैं। तुलसीदास जी राम और सीता जी के भावों का सजीव वर्णन करने में सफल हो पाए हैं। अवधी भाषा में रचित सवैये की सुंदरता पढ़ते ही बनती है।