What is anuspras, rupak, atishykti,  utpreksha, manvikaran, punurukti prakash alankar? Explain with example

 

मित्र!
हम आपको सभी अलंकार नहीं दे सकते हैं। हम आपको कुछ अलंकार दे रहे हैं, वे इस प्रकार हैं-

1. अनुप्रास अलंकार :- काव्य में जब किसी एक वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है, तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं। चाहे वह शुरु के वर्ण में हो या अंतिम वर्ण में हो;

जैसे - चरु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल थल में।

(यहां 'च' वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है, इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।)

2 रुपक अलंकार :- जहाँ रुप और गुण को बहुत अधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का आरोपित कर दिया जाए, वहाँ रुपक अलंकार होता है। अर्थात् जिसकी उपमा दी जाए उसको जो उपमा दी जा रही है वैसा ही मान लिया जाए।

(क) चरण-कमल बंदौ हरिराई।

(यहाँ चरण को कमल के समान मान लिया है।)

3 उत्प्रेक्षा अलंकार :- जिसको उपमा दी जा रही है, जिसकी उपमा दी जा रही है उसकी कल्पना कर ली जाती है। इसको पहचानने के लिए इसमें आए शब्द हैं - मनो, मानो, जानो, जनु, मनहु, मनु, जानहु, ज्यों, त्यों आदि इसमें केवल माना जाता है;

जैसे -

(क) सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।

मनहुँ नील मणि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।।

(इसमें श्री कृष्ण के शरीर को नीलमणि पर्वत और उनके वस्त्र को सुबह की धूप की तरह कल्पना की गई है कि मानो वे ऐसे हैं।)

4 अतिश्योक्ति अलंकार :- जहाँ वस्तु पदार्थ अथवा कथन को हम बढ़ा-चढ़ा कर कहते हैं, तो वह अतिश्योक्ति अलंकार होता है।

1. आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार

राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पर

(राणा अभी सोच ही रहे थे कि घोड़े ने नदी पार कर ली।)

5 मानवीकरण अलंकार :- जहाँ प्रकृति को मनुष्य रुप में मान लिया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है;

जैसे -

(क) अंबर घट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।

(सुबह) 'उषा' को 'नगर' माना गया है।

 

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