what is vakrokti alankar? and ,also please tell me how to identify "anyokati alankar"
नमस्कार मित्र,
वक्रोक्ति अलंकार- किसी एक आशाय वाले कहे हुए वाक्य का, किसी अन्य द्वारा श्लेष अथवा काकु से, अन्य अर्थ लिए जाने को 'वक्रोक्ति' अलंकार कहते हैं। जैसे- को तुम? हैं घनश्याम हम,
तो बसरो कित जाए।
जब कृष्ण घर आए, तो राधा ने न पहचानने का नाटक करते हुए पूछा तुम कौन हो? कृष्ण ने कहा मैं घनश्याम हूँ। तो राधा ने जानकर कहा कि यदि तुम घनश्याम हो तो कहीं वन में जाकर वर्षा को।
अन्योक्ति अंलकार- इस अलंकार में कहने वाला व्यक्ति अपनी बात किसी ओर उदाहरण के द्वारा समझाता है। वह व्यंग्य के माध्यम से भी अपनी बात रख सकता है। इस अंलकार को अप्रस्तुत प्रशंसा के द्वारा भी पहचाना जाता है। कवि राज बिहारी का दोहा अन्योक्ति अंलकार का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। इस दोहे की रचना के पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है राजा जयसिंह अपने विवाह के बाद राज-काज के कामों से दूर हो गए थे। राजा की ऐसी अनदेखी देख सभी मंत्री परेशान थे। किसी की ऐसी हिम्मत नहीं थी कि राजा को जाकर समझाया जा सके। सब बिहारी जी के पास मदद के लिए पहुँचे। बिहारी जी ने इसका एक तोड़ निकाला। उन्होंने राजा के पास दो पंक्तियाँ लिखकर भेजी, वे इस प्रकार थी-
नहि पराग नहि मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सो बँध्यो, आगे कौन हवाल।।
(इसमें भौंरे को बुरा भला कह कर राजा जयसिंह को उनकी रानी के साथ समय बिताने और राजकाज का काम न देखने पर व्यंग्य किया गया है।) इस तरह भंवरे के माध्यम से व्यंग्य कसकर उन्होंने राजा को अपनी बात समझा दी और राजा के क्रोध से भी बच गए क्योंकि उन्होंने कहीं भी राजा का नाम नहीं लिया परन्तु राजा समझ गए, यह बात उनके लिए ही कही गई है। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वह तुरन्त राज-काज के कार्यों में समय देने लगे।