चाँद से थोड़ी-सी गप्पें
चाँद से थोड़ी-सी गप्पें
काव्यांश 1
गोल हैं खूब मगर
आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा।
आप पहने हुए हैं कुल आकाश
तारों-जड़ा;
सिर्फ़ मुँह खोले हुए हैं अपना
गोरा-चिट्टा
गोल-मटोल,
अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त।
आप कुछ तिरछे नज़र आते हैं जाने कैसे
- खूब हैं गोकि!
प्रसंग 1
प्रस्तुत पंक्तियाँ …
To view the complete topic, please