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निबंध संग्रह

निबंध लेखन- परिचय

निबंध-लेखन कला

गद्य की विधाओं में निबंध-रचना एक मुख्य विधा है। निबंध गद्य-रचना का उत्कृष्ट उदाहरण है। अनुभव तथा ज्ञान का कोई भी क्षेत्र निबंध का विषय बन सकता है। जैसे - गणतंत्र दिवस, 15 अगस्त, होली, दिपावली, मेरा प्रिय कवि आदि।

निबंध लिखने के लिए लेखक के विषय का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है। विषय के प्रति अपने ज्ञान को प्रस्तुत करने के लिए निबंध की भाषा का प्रभावशाली होना अत्यंत आवश्यक है। अच्छे निबंध के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है

1. निबंध के द्वारा लेखक अपने विचारों को ठीक से प्रस्तुत करता है।

2. इसमें स्पष्टता और सजीवता होनी चाहिए।

3. भाषा सरल एवं प्रवाहपूर्ण होती है, साथ ही फैलाव के लिए मुहावरों, लोकोक्तियों व उदाहरणों का प्रयोग किया जाता है।

4. इसमें भूमिका व निष्कर्ष देना ज़रूरी है।

निबंध के अंग

निबंध के मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन अंग होते हैं

1. प्रस्तावना (भूमिका) − प्रस्तावना या भूमिका निबंध के प्रति पाठक के मन में रूचि पैदा करती है। यह अधिक लंबी नहीं होनी चाहिए।

2. विषयवस्तु (विवेचना) − यह निबंध का प्रमुख अंग है। इसमें विषय संबंधी बातों पर चर्चा की जाती है।

3. उपसंहार यह निबंध का अंतिम अंग है। इसमें निबंध में कही गई बातों को सार-रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

मनुष्य के जीवन में आत्मनिर्भर होना परम आवश्यक है। आत्मनिर्भरता का अर्थ होता है, स्वयं पर निर्भर रहना अर्थात अपनी ज़रूरतों और सुख-सुविधाओं को स्वयं पूरा करना। आत्मनिर्भरता जहाँ उसे स्वाबलंबी बनाती है, वहीं उसमें आत्मविश्वास का सुख भी भरती है। आत्मनिर्भरता हर मनुष्य के लिए आवश्यक है।

दूसरों पर निर्भर व्यक्ति का जीवन व्यर्थ होता है और उसकी स्वयं की शक्ति, योग्यता और स्वाभिमान का ह्रास होता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए सक्षम होता है। उसे जीवन में फैसले लेने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं होना पड़ता। इसी कारण उसे अपना अच्छा-बुरा सोचने की शक्ति को बल मिलता है। वह अपने साथ-साथ परिवार की भी देखभाल करता है। आत्मनिर्भरता उसमें कर्तव्य की भावना का विकास करती है। समाज में उसे इसी के कारण विशिष्ट स्थान प्राप्त होता है।

'जीवन' संघर्षों, विषमताओं, कष्टों और सुखों के मिले-जुले ताने-बाने का नाम है। जीवन में संघर्ष उसे लड़ने की प्रेरणा देते हैं। विषमताएँ उसके अंदर सूझ-बूझ और समझदारी आदि गुणों को विकसित करती है। कष्ट उसे मानसिक तौर पर मज़बूत बनाते हैं और धैर्य को बढ़ाते हैं। सुख उसमें विश्राम, आत्मविश्वास, शान्ति आदि गुणों का विकास करते हैं। इन सब परिस्थितियों से गुजरते हुए मनुष्य स्वयं को तभी संभाल पाता है, जब वह आत्मनिर्भर होता है। आत्मनिर्भरता उसे दृढ़ सबल देती है। वह हर परिस्थिति में समान भाव से रहते हुए स्वयं को निकाल पाता है। परन्तु यदि वह आत्मनिर्भर नहीं है, तो सुख भी उसके लिए दुख से कम नहीं होता। 

जो व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं होता, उसे सदा दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसका आत्मसम्मान दूसरों के द्वारा सदैव खण्डित किया जाता है। समाज में उसे लोगों द्वारा हीन-दृष्टि से देखा जाता है। वह सबके सम्मुख महत्वहीन हो जाता है। किसी विद्वान ने सही कहा है, ''मानव का महत्व आश्रित बनने में नहीं, आश्रय देने में है।'' आश्रय देने में जो सुख है, वह आश्रित होने में कहाँ है? आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने साथ-साथ देश, समाज, परिवार सबका कल्याण करते हैं। यदि समाज में आत्मनिर्भर व्यक्तियों की संख्या अधिक है, तो समझ लीजिए कि देश, समाज और परिवारों की उन्नति और प्रगति हो रही है। इसके विपरीत यदि देश में आत्मनिर्भर व्यक्तियों की कमी है, तो यह समझ लीजिए कि देश, समाज और परिवारों की स्थिति कितनी दयनीय है। 

आत्मनिर्भरता मनुष्य के अंदर अन्यास ही विभिन्न शक्तियों का संचार कर देती है। वह स्वावलंबी, आत्मविश्वासी, समझदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति बन जाता है। ये उसके विकास के लिए आवश्यक बिन्दु हैं। यह ज़रूरी नहीं की आत्मनिर्भर बनने के लिए मनुष्य का शिक्षित होना आवश्यक है। क्योंकि ऐसे बहुत से युवा हैं, जो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते परन्तु व्यापार में उन्हें अपार सफलता मिली होती है। वह भी आत्मनिर्भर होते हैं। शिक्षा मनुष्य के जीवन को नई और विकसित विचारधारा से सोचने का अवसर प्रदान करती है। देश और अपने आस-पास को समझने में योगदान देती है। आत्मनिर्भर बनाने में भी उसकी मुख्य भूमिका होती है। अत: हमें शिक्षा के महत्व को नकार नहीं सकते। परन्तु अशिक्षित व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं होता यह भी सत्य नहीं है। छोटे से छोटा काम करने वाला व्यक्ति भी आत्मनिर्भर होता है। आत्मनिर्भरता मनुष्य के जीवन का ऐसा केंद्र-बिन्दु है, जहाँ से उसके सभी स्वप्न साकार होते हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे कदम उठाए, जिससे देश का प्रत्येक व्यक्ति आत्मनिर्भर बन सके। हमें भी चाहिए कि स्वयं भी आत्मनिर्भर हों और औरों को भी आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करें। यही हमारी सच्ची जीत है। 

मनुष्य आरंभ से ही इतिहास को सहेजकर रखने की चेष्टा करता रहा है। उसने अपने द्वारा लिखित सामग्री को ताड़पत्रों, गुफाओं की दीवारों, चट्टानों, शीलालेखों आदि पर सहेजकर रखने का प्रयास किया है। परन्तु उसके द्वारा लिखित अधिकतर सामग्री नष्ट हो गई हैं। जो कुछ बची भी हुई हैं, वे इस दशा में हैं कि वे हमारे लिए अनुपयोगी हो गई हैं। 

इन सब समस्याओं को ध्यान में रखकर कंप्यूटर का आविष्कार किया गया। मनुष्य के इस आविष्कार ने उसके कार्यों को सरल व प्रभावशाली बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मनुष्य द्वारा कंप्यूटर की खोज (निर्माण) ने एक नई क्रांति को जन्म दिया। कंप्यूटर में उसने सर्वप्रथम अपनी ऐतिहासिक, राजनैतिक, धार्मिक, आविष्कारों, चिकित्सा आदि संबंधी समस्त जानकारियों को एकत्रित करना आरंभ कर दिया। कंप्यूटर में जानकारियों को एकत्रित करने से उनके नष्ट होने का भय जाता रहा। उनका संरक्षण करना अब आसान हो गया। ऐसा करने से लोगों को महत्वपूर्ण और अधिक-से-अधिक जानकारियाँ उपलब्ध कराई जा सकती थीं। इंटरनेट के आविष्कार ने इस समस्या का समाधान भी कर दिया।

कंप्यूटर के आविष्कार से पहले मनुष्य को अपने कार्यों को करने के लिए बड़ी जटिलता से गुजरना पड़ता था। वह अपने पत्र व अन्य कार्यों को टाइपराइटर के माध्यम से करवाया करता था। इससे उसका बहुत समय नष्ट हो जाता था। टाइपराइटर में गलतियों की संभावना बनी रहती थी, इससे कागज़ भी अधिक बर्बाद होते थे। समाचार-पत्रों और पत्र-पत्रिकाओं से संबंधी क्षेत्रों में तो बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। परन्तु कंप्यूटर के आविष्कार से इन क्षेत्रों में जो क्रांति आई वह काबिले-तारीफ़ है। कंप्यूटर के माध्यम से डिज़ाइनिंग व छपाई को एक नया स्वरुप मिला। वर्तमान समय की पत्र-पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में जो बदलाव आया है, वो भी कंप्यूटर की ही देन है। कंप्यूटर के आविष्कार के साथ ही कई नए कार्य क्षेत्रों का जन्म हुआ, जिससे रोज़गार के नए अवसर भी पैदा हुए। आज कंप्यूटर हर क्षेत्र में अपना स्थान बना चुका है। विभिन्न स्थानों जैसे- हवाई-अड्डा, रेलवे स्टेशन, सरकारी या गैर सरकारी कार्यालय, बैंक, पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, अस्पतालों आदि में कंप्यूटर अपनी विशेष पहचान बना चुके हैं। इनके बिना इन क्षेत्रों में होने वाले कार्यों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 

एक विद्यार्थी के लिए तो यह रामबाण औषधि की तरह कार्य करता है। पहले विद्यार्थियों को अपने अध्ययन के लिए पुस्तकों व पत्र-पत्रिकाओं तक ही सीमित रहना पड़ता था, जिससे उनका ज्ञान भी सीमित रहता था। कंप्यूटर के माध्यम से उनका अध्ययन क्षेत्र विस्तृत बन गया है। अब उन्हें एक ही विषय से सम्बन्धित ढेरों जानकारियाँ घर में रहकर ही उपलब्ध हो जाती हैं। उनका ज्ञान क्षेत्र अब सीमित दायरों से निकलकर विशाल समुद्र की तरह हो गया है। कंप्यूटर के इतने सारे गुणों को देखते हुए इसे मानव जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। 

कंप्यूटर के लाभ हैं, तो हानियाँ भी कम नहीं है। यदि कंप्यूटर में वायरस आ जाए, तो समस्त जानकारियाँ नष्ट हो जाती हैं। कुछ अपराधिक लोगों द्वारा, तो कई बैंकों या देश की सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से घुसपैठ की जाती है। यह बहुत गंभीर विषय है। साइबर क्राइम इसी से जुड़ा माना जाता है। इसके अधिक प्रयोग से सरदर्द, पीठ दर्द, आँखों संबंधी परेशानी जैसी बहुत-सी बीमारियाँ हो जाती हैं। विद्यार्थियों व अन्य युवा कंप्यूटर के सामने दिनभर बैठे रहते हैं। अपना कीमती समय वह इसमें गेम खेलने में नष्ट कर देते हैं या चैटिंग करने में नष्ट करते हैं, इससे उनके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है। बिजली की खपत भी इससे अधिक होती है। बिजली के नहीं होने पर कंप्यूटर काम करना बंद कर देते हैं। जब तक बिजली नहीं आती, तब तक सारा काम ठप्प हो जाता है।

इस आधार पर हम कह सकते हैं कि हर वस्तु के अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के पहलू होते हैं। यदि वह हमारे लिए लाभकारी है, तो कहीं-न-कहीं उसके नुकसान भी अवश्य होते हैं। हमें चाहिए उस वस्तु का प्रयोग सोच-समझकर करें ताकि उसका भरपूर लाभ स्वयं को नुकसान पहुँचाए बिना उठाया जा सके। 

भारत को गाँवों का देश कहा जाता …

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