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गृहं शून्यं सुतां विना

शालिनी गर्मियों की छुट्टियों में पिता के घर आई है। सभी लोगों ने प्रसन्न हृदय से उसका स्वागत किया, परन्तु उसकी भाभी उदासीन दिख रही थी।

शालिनी - भाभी! आप चिन्तित लग रही हो, सब कुछ ठीक तो है ना?

माला - हाँ शालिनी। मैं ठीक हूँ। तुम्हारी लिए मैं क्या लाऊ, कोल्ड्रिंक या चाय?

शालिनी - अभी कुछ नही चाहिए। रात में सबके साथ खाना खाऊंगी।

(खाने के समय भी माला की मनोदशा …

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