20 दोहे on friendship

गिरिये परवत शिखर ते, परिये धरनि मंझार
मूरख मित्र न कीजिए, बूडो काली धार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि चाहे पर्वत के शिखर से गिरना पड़े, मझधार में फंसे हों या कीचड में धंसना पड़े तब भी मूर्ख से मित्र मत कीजिए।

स्त्रोता तो घर ही नहीं, वक्ता बकै सो बाद
स्त्रोता वक्ता एक घर, तब कथनी को स्वाद

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यदि सुनने वाला अपना कान ही नहीं धरे तो वक्ता के बकते रहने का क्या लाभ। किसी को उपदेश तो तभी दिया जा सकता है जब वह सुनने वाला हो। अगर श्रोता और वक्ता का आपस में सामंजस्य न हो तो वार्तालाप निरर्थक हो जाता है।

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1.गिरिये परवत शिखर ते, परिये धरनि मंझार
मूरख मित्र न कीजिए, बूडो काली धार

2.संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि चाहे पर्वत के शिखर से गिरना पड़े, मझधार में फंसे हों या कीचड में धंसना पड़े तब भी मूर्ख से मित्र मत कीजिए।

3.स्त्रोता तो घर ही नहीं, वक्ता बकै सो बाद
स्त्रोता वक्ता एक घर, तब कथनी को स्वाद

4.संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यदि सुनने वाला अपना कान ही नहीं धरे तो वक्ता के बकते रहने का क्या लाभ। किसी को उपदेश तो तभी दिया जा सकता है जब वह सुनने वाला हो। अगर श्रोता और वक्ता का आपस में सामंजस्य न हो तो वार्तालाप निरर्थक हो जाता है।

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