mujhe sabhi alankaaron ke char char udharan chayie
अनुप्रास - जहां एक ही व्यंजन या कई व्यंजनों की आवृत्ति बार-बार हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
यमक - एक ही शब्द की भिन्न -भिन्न अर्थों में आवृत्ति यमक कहलाती है ।
श्लेष -जब एक ही शब्द से भिन्न -भिन्न कई अर्थ प्रकट करने का अभिप्राय होता हो, तो उसे श्लेष कहते हैं ।
उपमा - जब दो वस्तुओं की तुलना रूप, रंग या गुण की समानता के कारण की जाती है तो उपमा अलंकार होता है। जिस वस्तु का वर्णन किया जाता है उसे `उपमान` कहते है
रूपक - उपमा की ही भांति रूपक में भी दो वस्तुओं की तुलना की जाती है। इसमें उपमेय पर उपमान का आरोप कर दिया जाता है जिससे उपमा के `धर्म` और `वाचक शब्द` इसमें नहीं होते ।
उत्प्रेक्षा - जब उपमेय में उपमान से भिन्नताजानते हुए भी उसमें उपमान की सम्भावना प्रकट की जाती है तो उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यह सम्भावना मनु, मनहु, मानो, जानो आदि शब्दों के प्रयोग द्वारा प्रकट की जाती है।
उल्लेख - जब किसी वस्तु का वर्णन अनेक प्रकार से किया जाता है तो उल्लेख अलंकार होता है । जैसे- जिनकी रही भावना ज øसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी ।
अतिशयोक्ति - जहाँ किसी वस्तु की सराहना अत्यंत बढ़ा-चढ़ा कर की जाती है वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
अन्योक्ति - जहाँ अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत की व्यंजना हो वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
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यमक - एक ही शब्द की भिन्न -भिन्न अर्थों में आवृत्ति यमक कहलाती है ।
श्लेष -जब एक ही शब्द से भिन्न -भिन्न कई अर्थ प्रकट करने का अभिप्राय होता हो, तो उसे श्लेष कहते हैं ।
उपमा - जब दो वस्तुओं की तुलना रूप, रंग या गुण की समानता के कारण की जाती है तो उपमा अलंकार होता है। जिस वस्तु का वर्णन किया जाता है उसे `उपमान` कहते है
रूपक - उपमा की ही भांति रूपक में भी दो वस्तुओं की तुलना की जाती है। इसमें उपमेय पर उपमान का आरोप कर दिया जाता है जिससे उपमा के `धर्म` और `वाचक शब्द` इसमें नहीं होते ।
उत्प्रेक्षा - जब उपमेय में उपमान से भिन्नताजानते हुए भी उसमें उपमान की सम्भावना प्रकट की जाती है तो उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यह सम्भावना मनु, मनहु, मानो, जानो आदि शब्दों के प्रयोग द्वारा प्रकट की जाती है।
उल्लेख - जब किसी वस्तु का वर्णन अनेक प्रकार से किया जाता है तो उल्लेख अलंकार होता है । जैसे- जिनकी रही भावना ज øसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी ।
अतिशयोक्ति - जहाँ किसी वस्तु की सराहना अत्यंत बढ़ा-चढ़ा कर की जाती है वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
अन्योक्ति - जहाँ अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत की व्यंजना हो वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
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